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अथ सप्तश्लोकी दुर्गा Om Asttro

सादर नमन हम सभी जीवन में किसी न किसी समस्या से घिरे रहते हे और उससे छुटकारा पाना चाहते हे , जो देवि की भक्ति करते हे उनके लिए "श्री दुर्गासप्तशती " एक वरदान हे परन्तु समय न होने क कारण हम पूर्ण सप्तशती का पाठ नही कर पाते हे और कष्टों में घीरे रहते हे , इसी को ध्यान में रखते हुए "श्री दुर्गा" को प्रसन्न करने व् अपने कष्टों से सफलता की और जाने क लिए "श्री सप्तश्लोकी दुर्गा" जो की 7 श्लोक का हे उस  का पाठ कर पूर्ण दुर्गा की असीम कृपा को पाए | 
 

।। अथ सप्तश्लोकी दुर्गा ।।


शिव उवाच - 
देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी |
कलौ हि कार्यसिध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः || 
शिव जी बोले - हे देवि ! तुम भक्तो के लिए सुलभ हो और समस्त कर्मो का विधान करने वाली हो | कलियुग में कामनाओं की सिद्धि - हेतु यदि कोई उपाय हो तो उसे अपनी वाणी द्वारा सम्यक - रूप से व्यक्त करो | 

देव्युवाच -
शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम् ।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ।।
देवी ने कहा - हे देव ! आपका मेरे ऊपर बहुत स्नेह है । कालियुग में समस्त कामनाओ को सिद्ध करने वाला जो साधन है वह बताती हु , सुनो ! उसका नाम है 'अम्बा स्तुति' । 

ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्र मन्त्रस्य नारायण ऋषिः , अनुष्टुप् छन्दः , श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महा सरस्वत्यो देवताः , श्रीदुर्गा प्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी दुर्गा पाठे विनियोगः । 
ॐ इस दुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्र के नारायण ऋषि है , अनुष्टुप छन्द है , श्रीमहाकाली , महालक्ष्मी ओर महासरस्वती देवता है , श्री दुर्गा की प्रसन्नता के लिए सप्तश्लोकी दुर्गापाठ में इसका विनियोग किया जाता है ।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ।। १ ।।
वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खीचकर मोह में डाल देती है ।। १ ।।

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः ,
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या ,
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ।। २ ।।
माँ दुर्गे ! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती है , ओर स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिंतन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती है । दुःख , दरिद्रता ओर भय हरने वाली देवि ! आपके सिवा दूसरी कौन है , जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए सदा ही दयार्द्र रहता हो ।। २ ।। 

सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।। ३ ।।
नारायणी ! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो । कल्याणदायिनी शिवा हो । सब पुरुषार्थो को सिद्ध करने वाली , शरणागतवत्सला , तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो । तुम्हें नमस्कार है ।। ३ ।। 

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तुते ।। ४ ।।
शरण मे आये हुए दीनो एवम पीड़ित की रक्षा में सलंग्न रहने वाली तथा सबकी पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवी ! तुम्हे नमस्कार है ।। ४ ।।

सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तुते ।। ५ ।।
सर्वस्वरूपा , सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि ! सब भयो से हमारी रक्षा करो ; तुम्हे नमस्कार है ।। ५ ।।

रोगानशेषानपहंसी तुष्टा ,
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्न राणांं ,
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ।। ६ ।।
देवि ! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो । जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके है , उन पर विपत्ति तो आती ही नही । तुम्हारी शरण मे गए हुए मनुष्य दुसरो को शरण देने वाले हो जाते है ।। ६ ।।

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरीविनाशनम् ।। ७ ।।
सर्वेश्वरि ! तुम इसी प्रकार तीनो लोको की समस्त बाधाओ को शान्त करो और हमारे शत्रुओ का नाश करती रहो ।। ७ ।।

।। इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा ।।

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